आध्यात्मिक प्रगति मे खास बाधा
आध्यात्मिक जगत मे प्रगति के लिए मन के प्रति जागना बहुत महत्व पूर्ण है.अर्थात मन मे आने वाले भावों
को जाने और उन मे फँसे नहीं .ऐसा कर सकें तो बहुत अच्छा नहीं तो एक दोष तो ऐसा है की जिसके प्रति जागना
तो परम आवश्यक है वह है -- कपट
मनुष्य को काम ,क्रोध आदि से बचना तो चाहिए क्योंकि ये विकार हैं (परंतु दबाना नहीं चाहिए )
फिर भी ये जीवन को इतना नुकसान नहीं पहुँचा सकते क्योंकि ये प्राकृतिक आवेग हैं.
परंतु कपट प्राकृतिक आवेग नहीं हैं.
भगवान कहते हैं
मोहे कपट छल छिद्र न भावा !
निर्मल मन जन सो मोहि पावा !!
कपट किया जाता है रूप रेखा रच कर . कर्तापन बहुत सघनता पूर्वक मौजूद रहता है.
जहाँ कर्तापन है वहाँ कर्म बंधन है जहाँ कर्मबंधन है वहाँ फल भोगने मे परतन्त्रता है
पराधीन सपनेहू सुख नहीं - मानस
इसलिये मनुष्य को विवेक पूर्वक कपट से बचना ही चाहिए
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